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Wednesday 3 December 2014

भोपाल गैस त्रासदी के तीस बरस

तीस बरस बीत गए भोपाल गैस त्रासदी के

देखते-देखते भोपाल गैस त्रासदी के तीस बरस बीत गए। हर वर्ष 3 दिसम्बर को मन में कई सवाल उठकर अनुत्तरित रह जाते हैं। हमारे देश में मानव जीवन कितना सस्ता और मृत्यु कितनी सहज है इसका अनुमान इस विभीषिका से लगाया जा सकता है, जिसमें हजारोें लोग अकाल मौत के मुँह में चले गए और लाखों लोग प्रभावित हुए। इस त्रासदी से जहाँ एक ओर हजारों पीडि़तों का शेष जीवन घातक बीमारियों, अंधेपन एवं अपंगता का अभिशाप बना गया तो दूसरी ओर अनेक घरों के दीपक बुझ गए। इससे प्रभावित बच्चों, जवानों की जीवन शक्ति का क्षय हो गया और उनकी आयु घट गई। हजारों परिवार निराश्रित और बेघर हो गये, जिन्हें तत्काल जैसी सहायता व सहानुभूति मिलनी चाहिए थी वह न मिली।   
          विकासशील देशों को विकसित देश तकनीकी प्रगति एवं औद्योगिक विकास और सहायता के नाम पर वहाँ त्याज्य एवं निरूपयोगी सौगात देते हैं, इसका सबसे बड़ा उदाहरण यूनियन कार्बाइड काॅरपोरेशन है, जिसके कारण हजारों लोग मारे गए, कई हजार कष्ट और पीड़ा से संत्रस्त हो गए लेकिन उनकी समुचित सहायता व सार-संभाल नहीं हुई, जिससे पीडितों को उचित क्षतिपूर्ति के लिए कानूनी कार्यवाही एवं नैतिक दबाव का सहारा लेना पड़ा। यदि अमेरिका में ऐसी दुर्घटना होती तो वहाँ की समूची व्यवस्था क्षतिग्रस्तों को यथेष्ट सहायता मुहैया कराकर ही दम लेती। अमेरिका में ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें जनजीवन को अरक्षा व अनिष्ट के लिए जिम्मेदार कम्पनियों एवं संस्थानों ने करोड़ों डालरों की क्षतिपूर्ति दी, लेकिन गरीब देशों के नागरिकों का जीवन मोल विकसित देशों के मुकाबले अतिशय सस्ता आंका जाना इस त्रासदी से आसानी से समझ में आता है।
         इस विभाीषिका से एक साथ कई मसले सामने आये। एक तो ऐसे कारखानों को घनी आबादी के बीच लगाने की अनुमति क्यों दी गई, जहाँं विषाक्त गैसों का भंडारण एवं उत्पादकों में प्रयोग होता है। यह कीटनाशक कारखाना देश का सबसे विशाल कारखाना था, जिसने सुरक्षा व्यवस्था और राजनीतिक सांठ-गांठ की पोल खोल दी। यह दुर्घटना विश्व में अपने ढंग की पहली घटना थी। विभीषिका से पूर्व भी संयंत्र में कई बार गैस रिसाव की घटनायें घट चुकी थी, जिसमें कम से कम दस श्रमिक मारे गए थे। 2-3 दिसम्बर 1984 की दुर्घटना मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जहरीली गैस से हुई। कहते हैं कि इस गैस को बनाने के लिए फोस जेन नामक गैस का प्रयोग होता है। फोसजेन गैस भयावह रूप से विषाक्त और खतरनाक है। कहा जाता है कि हिटलर ने यहूदियों के सामूहिक संहार के लिए गैस चेम्बर बनाये थे जिसमें यह गैस भरी हुई थी। ऐसे खतरनाक एवं प्राणघातक उत्पादनों के साथ संभावित खतरों का पूर्व आकलन एवं समुचित उपाय किए जाते हैं। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यदि सुरक्षा उपाय हेतु ठोस कदम उठाए होते तो इस विभीषिका से बचा जा सकता था। पूर्व की दुर्घटनाओं के बाद कारखाने की प्रबंध व्यवस्था ने उचित कदम नहीं उठाए और शासन प्रशासन भी कत्र्तव्यपालन से विमुख व उदासीन बना रहा नतीजन हजारों लोगों इस आकस्मिक विपदा के शिकार होना पड़ा। 
         तीस बरस बीत जाने पर भी दुर्घटना स्थल पर पड़े केमिकल कचरे को अब तक ठिकाने न लगा पाना और गैस पीडि़तों को समुचित न्याय न मिल पाना शासन प्रशासन की कई कमजोरियों को उजागर करती है।
 KAVITA RAWAT के ब्लॉग से साभार 

Friday 3 October 2014

रावण के बिना दशहरा अधूरा है

आसुरी शक्ति पर दैवी-शक्ति की विजय का प्रतीक शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के नवस्वरूपों की नवरात्र के पश्चात् आश्विन शुक्ल दशमी को इसका समापन ‘मधुरेण समापयेत’ के कारण ‘दशहरा’ नाम से प्रसिद्ध है।  दशहरा असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। रावण के बिना दशहरा अधूरा है। बचपन में जब नवरात्रों में रामलीला का मंचन होता तो उसे देखने के लिए हम बच्चे बड़े उत्साहित रहते। पूरे 11 दिन तक आस-पास जहां भी रामलीला होती, हम जैसे-तैसे पहुंच जाते। किसी दिन भले ही नींद आ गई होगी लेकिन जिस दिन रावण का प्रसंग होता उस दिन उत्सुकतावश आंखों ने नींद उड़ जाती। पहले दिन मंच पर रावण अपने भाईयो कुंभकरण व विभीषण के साथ एक टांग पर खड़े होकर घनघोर ब्रह्मा जी की तपस्या करता नजर आता तो हम रोमांचित हो उठते। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उनसे वर मांगने को कहते तो वह भारी-भरकम आवाज में यह वरदान मांगते कि- 'देव-दनुज, किन्नर और नारी, जीतहूँ सबको सकल जग जानी।" कुंभकरण का विशाल शरीर देखकर ब्रह्मा जी उसे भ्रमित कर देते हैं तो वह "सुनहुं नाथ यह विनती हमारी, मो को है अति निद्रा प्यारी।" कहकर छः माह सोने व एक दिन जागने का वरदान मांग बैठता। अंत में विभीषण ब्रह्मा जी से प्रभु के चरणों में भक्ति के साथ जनकल्याण का वरदान इस तरह मांगते कि, "जो प्रभु प्रसन्न मोहि पर, दीजो यह वरदान, जनम-जनम हरि भक्ति में सदा रहे मम ध्यान।" भगवान ब्रह्मा जी ‘तथास्तु’  कहकर अंतर्ध्यान होते तो दृश्य का पटाक्षेप हो जाता। 
          "देखो ऐ लोगो तुम मेरे बल को, कैलाश परबत उठा रहा हूँ। सब देखें कौतुक नर और नारी, नर और नारी कैलाश परबत उठा रहा हूँ।"  और जैसे ही वह कैलाश पर्वत को उठाने के लिए जोर लगता है तो पार्वती डर जाती कि यह क्या हो रहा है तो शिवजी उन्हें समझाते ही यह सब रावण का काम है जो वरदान पाकर उदण्ड हो गया है और इसी के साथ वे अपनी त्रिशुल उठाकर गाड़ देते जिससे रावण बहुत देर तक   "त्राहि माम्, त्राहि माम्" की रट लगा बैठता जिसे सुनकर माता पार्वती को अच्छा नहीं लगता और वे  भगवान शिव उसे  छोड़ देने को कहते। भोले शंकर अपना त्रिशूल उठाते हैं तो वह छूटकर भाग खड़ा होता। लेकिन मंचन के अगले दृश्य के लिए जैसे ही सींटी बजती और पर्दा खुलता तो वहाँ अलग-अलग शक्ल-सूरत वाले राक्षस धमाल मचाते नजर आते, जिनकी उटपटांग बातें सुनकर कभी हँसी आती तो कभी-कभी डर भी लगता। इसी बीच जैसे ही रावण तेजी से मंच पर आकर इधर से उधर चहलकदमी कर गरज-बरसकर दहाड़ता कि-"ऐ मेरे सूरवीर सरदारो! तुम बंद कंदराओं में जाकर ऋषि-मुनियों को तंग करो। उनके यज्ञ में विध्न-बाधा डालो। यज्ञहीन होने से सब देवता बलहीन हो जायेंगे और हमारी शरण में आयेंगे। तब तुम सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सुख भोगोगे।" तो राक्षसों के साथ हमारी भी सिट्टी-पिट्टी गोल हो जाती। राक्षसों का अभिनय देखते ही बनता वे ’जी महाराज’ ‘जी महाराज’ की रट लगाकर उसके आगे-पीछे इधर से उधर छुपते फिरते।
 अगले दृश्य में रावण वरदान पाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कैलाश पर्वत पर करता दिखाई देता। वह कैलाश पर्वत जिस पर शिवजी और पार्वती जी विराजमान रहते, उसे एक हाथ से उठाते हुए कहता कि-
           रावण का अगला लघु दृश्य सीता स्वयंवर में  देखने को मिलता, जहांँ वह धनुष उठाने के लिए जैसे ही तैयार होता है तो बाणासुर आकर उसे टोकते हुए समझाईश देता कि-"न कर रावण गुमान इतना, चढ़े न तुमसे धनुष भारी, मगर धनुष को प्रभु वह तोड़े जिन्होंने गौतम की नारी तारी।" जिसे सुन रावण क्रोधित होकर उसे याद दिलाते हुए मूर्ख ठहराते हुए कहता- "चुप बैठ रह वो बाणासुर, इस दुनिया में बलवान नहीं, मैंने कैलाश पर्वत उठाया था, क्या मूर्ख तुझे याद नहीं?" इसी के साथ जब वह धनुष उठाने के लिए जैसे ही झुकता तो एक आकाशवाणी होती कि उसकी बहन को कोई राक्षस उठा ले जा रहा है। जिसे सुन वह यह कहते हुए कि "अभी तो वह जा रहा है ,लेकिन एक दिन वह सीता को अपनी पटरानी जरूर बनायेगा।" तेजी से भाग जाता।  
 इसी तरह मारीच प्रसंग के बाद सीताहरण और फिर आखिर में युद्ध की तैयारी और फिर 11वें दिन राम-रावण युद्ध के दृश्य में रावण के  मारे जाने के बाद भी हमारी आपस में बहुत सी चर्चायें कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती। स्कूल की किताब में लिखा हमें याद न हो पाये लेकिन रामलीला में किसकी क्या भूमिका रही, किसने क्या-क्या और किस ढंग से कहा इस पर आपसी संवाद स्कूल जाने और वापस घर पहुंँचने तक निरंतर चलता रहता।         
 आज जब भी दशहरा मैदान में रावण का दहन होता है तो उसके दस मुखों पर ध्यान केन्द्रित होता है। मेरी तरह आपका भी ध्यान  इस ओर जरूर जाता होगा कि क्या कभी दशानन रावण ने अपने दस मुखों से बोला होगा? इस संबंध में कहते हैं कि रावण को श्राप था कि जिस दिन वह अपने दस मुखों से एक साथ बोलेगा, उसी दिन उसकी मृत्यु सन्निकट होगी और वह बच नहीं पायेगा। इसीलिए वह बहुत सचेत रहता था। लेकिन कहा जाता है कि जब भगवान राम द्वारा समुद्र पर पुल बांध लेने का समाचार उसके दूतों ने उसे सुनाया तो वह जिस समुद्र को कभी नहीं बांध सका, इस कल्पनातीत कार्य के हो जाने पर विवेकशून्य होकर एक साथ अपने दस मुखों से समुद्र के दस नाम लेकर बोल उठा- 
बांध्यो बननिधि नीरनिधि, जलधि सिंघु बारीस।
सत्य तोयनिधि कंपति, उदति पयोधि नदीस।। 
………फिलहाल इतना ही .............

सबको दशहरा की हार्दिक शुभकामनाऐं।
कविता रावत के ब्लॉग से साभार!

Thursday 2 October 2014

गाँंधी जयंती और स्वच्छता अभियान

गांधी जयंती गांधी जी को स्मरण करने का पुण्य दिन है। 2 अक्टूबर 1869 को गांधी जी के जन्म हुआ था। इसलिए कृतज्ञ राष्ट्र उनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। अर्चना के अगणित स्वर मिलकर इस युग के सर्वश्रेष्ठ महामानव की वंदना करता है।  इस दिन स्थान-स्थान पर गांधी जी के जीवन की झांकियां दिखाई जाती है, उनके जीवन की विशिष्ट घटनाओं के चित्र लगाए जाते हैं। गांधी जी पर प्रवचन और भाषण होते है। मुख्य समारोह दिल्ली के राजघाट पर होता है। राष्ट्र के कर्णधार मुख्यतः राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री और नेतागण तथा श्रद्धालु-जन गांधी जी के समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। प्रार्थना-सभा में राम धुन और गांधी जी के प्रिय भजनों का गान होता है। विभिन्न धर्मो के पुजारी प्रार्थना के साथ अपने-अपने धर्म-ग्रंथों से पाठ करते हैं। श्रद्धा-सुमन चढ़ाने और भजन-गान का कार्यक्रम ‘बिड़ला हाउस’ में भी होता है, जहां गांधी जी शहीद हुए थे।
भारत सरकार द्वारा गांधी जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय स्वच्छता जागरूकता अभियान चलाये जाने की घोषणा स्वागतयोग्य है। प्रधानमंत्री मोदी जी 2 अक्टूबर को एक बुकलेट जारी कर ‘स्वच्छ भारत मिशन’ लाँच करते हुए स्वयं इसकी शुरूआत कर लोगों को जागरूक करेंगे। समस्त देशवासी इस अभियान से जुड़कर इसे सफल बनायें इसके लिए ‘स्वच्छता शपथ’ कुछ इस प्रकार होगा-
  • महात्मा गाँधी ने जिस भारत का सपना देखा था, उसमें सिर्फ राजनैतिक आजादी ही नहीं थी, बल्कि एक स्वच्छ एवं विकसित देश की कल्पना भी थी।
  • महात्मा गांधी ने गुलामी की जंजीरों को तोड़कर माँ भारती को आजाद कराया। अब हमारा कर्तव्य  है कि गन्दगी को दूर करके भारत माता की सेवा करें।
  • मैं शपथ लेता/लेती हूँ कि मैं स्वयं स्वच्छता के प्रति सजग रहूंगा/रहूंगी और उसके लिए समय दूँगा/दूँगी।
  • हर वर्ष 100 घंटे यानी हर सप्ताह 2 घंटे श्रमदान करके स्वच्छता के इस संकल्प को चरितार्थ करूंगा/करूंगी।
  • मैं न गंदगी करूँगा न किसी और को करने दूंगा/दूंगी।
  • सबसे पहले मैं स्वयं से, मेरे परिवार से, मेरे मोहल्ले से, मेरे गांव से एवं मेरे कार्यस्थल से शुरूआत करूंगा/करूंगी।
  • मैं यह मानता/मानती हूं कि दुनिया के जो भी देश स्वच्छ दिखते हैं उसका कारण वहां के नागरिक गंदगी नहीं करते और न ही होने देते हैं।
  • इस विचार के साथ मैं गाँव हो या शहर गली-गली स्वच्छ भारत मिशन का प्रचार करूंगा/करूंगी।
  • मैं आज जो शपथ ले रहा हूँ वह अन्य 100 व्यक्तियों से भी करवाऊँगा/करवाऊँगी।
  • वे भी मेरी तरह स्वच्छता के लिए 100 घंटे दें, इसके लिए प्रयास करूंगा/करूगी।
  • मुझे मालूम है कि स्वच्छता की तरफ बढ़ाया गया मेरा एक कदम पूरे भारत देश को स्वच्छ बनाने में मदद करेगा।
            हम सभी भलीभांति जानते हैं कि यह अभियान तभी सफल हो सकेगा जब सभी भारतवासी सच्चे मन से गांधी जी के विचारों और उनकी कार्यप्रणाली को आत्मसात करेंगे। क्योंकि हमारे देश की बिडम्बना है कि हम स्वयं गांधी जी की तरह सोच नहीं बना पाते। काम को छोटा-बड़ा समझकर उसको सोचने-विचारने में ही अधिकाशं समय बर्बाद कर देते हैं। 'यह मेरा काम नहीं है, उसका काम है' जैसी धारणा का हमारे मन में गहरी पैठ है। जबकि बापू यह मानते थे कि अपनी सेवा किये बिना कोई दूसरों की सेवा नहीं कर सकता है। दूसरों की सेवा किये बिना जो अपनी ही सेवा करने के इरादे से कोई काम शुरू करता है, वह अपनी और संसार की हानि करता है। वे खुद कैसे दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाते थे, इस पर एक प्रेरक प्रसंग देखिए- मगनवाड़ी आश्रम में सभी को अपने हिस्से का आटा पीसना पड़ता था। एक बार आटा समाप्त हो गया। आश्रमवासी रसोईया सोचने लगा कि अब क्या किया जाय? यदि वह चाहता तो स्वयं भी पीसकर उस दिन का काम चला सकता था, लेकिन चिढ़कर उसने ऐसा नहीं किया। वह सीधे गांधी जी के पास गया और बोला ‘आज रसोईघर में रोटी बनाने के न आटा है न कोई पीसने वाला है। अब आप ही बताएं, क्या करूं? गांधी जी ने शांत भाव से कहा- ‘इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं है। चलो, मैं चलकर पीस देता हूँ।’ बापू अपना काम छोड़कर गेंहूँ  पीसने बैठ गए। जब रसोईया ने गांधी जी को चक्की चलाते देखा तो उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई। उसने गांधी जी से कहा कि ‘बापू आप जाइये, मैं खुद ही पीस लूंगा।’ इसका गहरा प्रभाव केवल रसोईया पर ही नहीं बल्कि सभी व्यक्तियों पर पड़ा।   
आइए, स्वच्छता अभियान से जुड़कर ‘स्वच्छता शपथ’ में उल्लेखित बिन्दुओं पर आज ही अमल करते हुए देश को स्वच्छ बनाने की दिशा में अपना अमूल्य योगदान देने के लिए आगे आयें और भारत को स्वच्छ बनायें।

कविता रावत के ब्लॉग से साभार 

Sunday 17 August 2014

जन्माष्टमी

मान्यता है कि त्रेता युग में  'मधु' नामक दैत्य ने यमुना के दक्षिण किनारे पर एक शहर ‘मधुपुरी‘ बसाया। यह मधुपुरी द्वापर युग में शूरसेन देश की राजधानी थी। जहाँ अन्धक, वृष्णि, यादव तथा भोज आदि सात वंशों ने राज्य किया। द्वापर युग में भोजवंशी उग्रसेन नामक राजा राज्य करता था, जिसका पुत्र कंस था।  कंस बड़ा क्रूर, दुष्ट, दुराचारी और प्रजापीड़क था। वह अपने पिता उग्रसेन को गद्दी से उतारकर स्वयं राजा बन बैठा। उसकी एक बहन थी, जिसका नाम देवकी था। वह अपनी बहन से बहुत प्यार करता था। जब उसका विवाह यादववंशी वसुदेव से हुआ तो वह बड़ी खुशी से उसे विदा करने निकला तो रास्ते में आकाशवाणी हुई  कि- "हे कंस! जिस बहन को तू इतने लाड़-प्यार से विदा कर रहा है, उसके गर्भ से उत्पन्न आठवें पुत्र द्वारा तेरा अंत होगा।" यह सुनकर उसने क्रोधित होकर देवकी को मारने के लिए तलवार निकाली, लेकिन वसुदेव के समझाने और देवकी की याचना पर उसने इस शर्त पर उन्हें हथकड़ी लगवाकर कारागार में डलवा दिया कि उनकी जो भी संतान होगी वह उसे सुपुर्द कर देंगे। एक के बाद एक सात संतानों को उसने जन्म लेते ही मौत के घाट उतार दिया। 
          आकाशवाणी के अनुसार जब आठवीं संतान होने का निकट समय आया तो उसने पहरा और कड़ा कर दिया। लेकिन ईश्वर की लीला कौन रोक पाता? वह समय भी आया जब भादों मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में घनघोर अंधकार और मूसलाधार वर्षा में भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्कृताम' तथा 'धर्म संस्थापनार्थाय' अर्थात् दुराचरियों का विनाश कर साधुओं के परित्राण और धर्म की स्थापना हेतु भगवान श्रीकृष्ण अवतरित हुए। 
       
कंस इस बात से अनभिज्ञ था कि ईश्वर जन्म नहीं वह तो अवतरित होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अवतरण के साथ ही अपनी लीलायें आरम्भ कर दी। अवतरित हुए तो जेल के पहरेदार गहरी नींद में सो गये। वसुदेव-देवकी की हथकडि़यां अपने आप खुल गई। आकाशवाणी हुई तो वसुदेव के माध्यम से सूपे में आराम से लेट गये और उन्हें उफनती यमुना नदी पार करवाकर नंदबाबा व यशोदा के धाम गोकुल पहुंचा दिया। जहाँ नंदनंदन और यशोदा के लाड़ले कन्हैया बनकर उनका जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। आज भी यह सम्पूर्ण भारत के साथ ही विभिन्न देशों में भी मनाया जाता है। मथुरा तथा वृन्दावन में यह सबसे बड़े त्यौहार के रूप में बड़े उत्साह के साथ 10-12 दिन तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिर में श्रीकृष्ण की अपूर्व झांकियां सजाई जाती हैं। यहाँ श्रद्धालु जन्माष्टमी के दिन मथुरा के द्वारिकाधीश मंदिर में रखे सवा लाख के हीरे जडि़त झूले में भगवान श्रीकृष्ण को झूलता देख, खुशी से झूमते हुए धन्य हो उठते हैं।
           बहुमुखी व्यक्तित्व के स्वामी श्रीकृष्ण आत्म विजेता, भक्त वत्सल तो थे ही साथ ही महान राजनीतिज्ञ भी थे, जो कि महाभारत में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बिठाया। महाभारत के युद्धस्थल में मोहग्रस्त अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए अपना विराट स्वरुप दिखाकर उनका मोह से मुक्त कर जन-जन को ‘कर्मण्येवाधिकारिस्ते मा फलेषु कदाचन‘ का गुरु मंत्र दिया। वे एक महान धर्म प्रवर्तक भी थे, जिन्होंने ज्ञान, कर्म और भक्ति का समन्व्य कर भागवत धर्म का प्रवर्तन किया। योगबल और सिद्धि से वे योगेश्वर (योग के ईश्वर) कहलाये। अर्थात योग के श्रेष्ठतम ज्ञाता, व्याख्याता, परिपालक और प्रेरक थे, जिनकी लोक कल्याणकारी लीलाओं से प्रभावित होकर वे आज न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण विश्व में पूजे जाते हैं।
         भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के सम्बन्ध में सूर्यकान्त बाली जी ने बहुत ही सुन्दर और सार्थक ढंग से लिखा है कि- “कृष्ण का भारतीय मानस पर प्रभाव अप्रतिम है, उनका प्रभामंडल विलक्षण है, उनकी स्वीकार्यता अद्भुत है, उनकी प्रेरणा प्रबल है, इसलिए साफ नजर आ रहे उनके निश्चित लक्ष्यविहीन कर्मों और निश्चित निष्कर्षविहीन विचारों में ऐसा क्या है, जिसने कृष्ण को कृष्ण बना दिया, विष्णु का पूर्णावतार मनवा दिया? कुछ तो है। वह ‘कुछ’ क्या है?  कृष्ण के जीवन की दो बातें हम अक्सर भुला देते हैं, जो उन्हें वास्तव में अवतारी सिध्द करती हैं। एक विशेषता है, उनके जीवन में कर्म की निरन्तरता। कृष्ण कभी निष्क्रिय नहीं रहे। वे हमेशा कुछ न कुछ करते रहे। उनकी निरन्तर कर्मशीलता के नमूने उनके जन्म और स्तनंध्य शैशव से ही मिलने शुरू हो जाते हैं। इसे प्रतीक मान लें (कभी-कभी कुछ प्रतीकों को स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं होता) कि पैदा होते ही जब कृष्ण खुद कुछ करने में असमर्थ थे तो उन्होंने अपनी खातिर पिता वसुदेव को मथुरा से गोकुल तक की यात्र करवा डाली। दूध् पीना शुरू हुए तो पूतना के स्तनों को और उनके माधयम से उसके प्राणों को चूस डाला। घिसटना शुरू हुए तो छकड़ा पलट दिया और ऊखल को फंसाकर वृक्ष उखाड़ डाले। खेलना शुरू हुए तो बक, अघ और कालिय का दमन कर डाला। किशोर हुए तो गोपियों से दोस्ती कर ली। कंस को मार डाला। युवा होने पर देश में जहां भी महत्वपूर्ण घटा, वहां कृष्ण मौजूद नजर आए, कहीं भी चुप नहीं बैठे, वाणी और कर्म से सक्रिय और दो टूक भूमिका निभाई और जैसा ठीक समझा, घटनाचक्र को अपने हिसाब से मोड़ने की पुरजोर कोशिश की। कभी असफल हुए तो भी अगली सक्रियता से पीछे नहीं हटे। महाभारत संग्राम हुआ तो उस योध्दा के रथ की बागडोर संभाली, जो उस वक्त का सर्वश्रेष्ठ  धनुर्धारी था। विचारों का प्रतिपादन ठीक युध्द क्षेत्र में किया। यानी कृष्ण हमेशा सक्रिय रहे, प्रभावशाली रहे, छाए रहे।"
कृष्ण जन्मस्थली मथुरा का चित्र गूगल से साभार 

 सभी श्रद्धालु जनों को  भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें! 
कविता रावत के ब्लॉग KAVITARAWATBPLसे साभार! 

Monday 21 July 2014

स्वर्गीय श्री सहाय ने सेवा धर्म का इतिहास बनाया - मुख्यमंत्री श्री चौहान

प्रथम शीतला सहाय स्मृति पुरस्कार से वरिष्ठ पत्रकार श्री मदनमोहन जोशी सम्मानित

भोपाल :  मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा है कि स्वर्गीय शीतला सहाय ने सेवा-धर्म का इतिहास बनाया। श्री चौहान आज रविन्द्र भवन में शीतला सहाय पुण्य स्मृति समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कार्यक्रम में केन्सर उपचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिये चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा स्थापित प्रथम शीतला सहाय स्मृति पुरस्कार वरिष्ठ पत्रकार श्री मदनमोहन जोशी को प्रदान किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व मुख्यमंत्री श्री सुंदरलाल पटवा ने की। कार्यक्रम में केन्द्रीय श्रम एवं खनन मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर और पूर्व मुख्यमंत्री श्री कैलाश जोशी मौजूद थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि श्री सहाय उनके कार्यों के लिये समाज में सदैव जीवित रहेंगे। उनका जीवन देश और समाज के लिये था। अल्पायु पुत्र के मृत्युरूपी जीवन के सबसे बड़े दुख से वह टूटे नहीं और वज्र के समान संकल्प के साथ खड़े हो गये। श्री चौहान ने कहा कि श्री सहाय के कामों को आगे बढ़ाने के लिये सरकार और समाज को मिलकर कार्य करना होगा। उन्होंने कहा कि केंसर का एक बड़ा कारण तंबाकू है। केंसर को जड़ से उखाड़ फेकने के लिये तंबाकू के सेवन के खिलाफ जनजागृति अभियान चलाया जाना चाहिये।
केन्द्रीय मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि भावी पीढ़ी को सत्कर्म की प्रेरणा देने के लिये श्री शीतला सहाय के व्यक्तित्व का स्मरण किया जाना चाहिये। वे कर्मयोगी थे। कार्यकर्ताओं की प्रेरणा थे। समर्पण और संकल्प बल के धनी थे। उन्होंने ट्रक चलाकर कण्डे ढ़ोकर और लॉटरी बेचकर ग्वालियर में केंसर अस्पताल की स्थापना के लिये कार्य किया। यही कारण था कि आपातकाल के दौरान उनके जेल में रहते हुये भी केंसर अस्पताल के निर्माण का कार्य रुका नहीं। उनका सार्वजनिक जीवन स्वच्छ, निर्मल और पारदर्शी था।
भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री श्री रामलाल ने कहा कि संवेदनशीलता और सेवाभाव ही व्यक्ति को बड़ा बनाता है। स्वर्गीय श्री शीतला सहाय ने राजनैतिक जीवन को नया आयाम दिया। उन्होंने बताया कि राजनीति केवल निर्वाचन तक सीमित नहीं है। राजनीतिज्ञ द्वारा भी विशाल सामाजिक संस्थायें खड़ी की जा सकती हैं। शीतला सहाय स्मृति ग्रंथ के संपादक श्री महेश श्रीवास्तव ने कहा कि स्वर्गीय श्री सहाय का कर्मक्षेत्र भले ही ग्वालियर रहा लेकिन उनकी कीर्ति पूरे प्रदेश और देश में व्याप्त है। कृतज्ञता ज्ञापन डॉ. श्रीमती अलका प्रधान ने किया। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा स्वर्गीय शीतला सहाय स्मृति ग्रंथ का विमोचन और उनके जीवन पर निर्मित बेवसाइट का लोकार्पण किया गया।
कार्यक्रम में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री गोपाल भार्गव, महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह, राजस्व एवं पुनर्वास मंत्री श्री रामपाल सिंह, सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री श्री लालसिंह आर्य, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री श्री शरद जैन, सांसद श्री अनूप मिश्रा और श्री भागीरथ प्रसाद, महापौर भोपाल श्रीमती कृष्णा गौर, ग्वालियर महापौर श्रीमती समीक्षा गुप्ता पूर्व सांसद श्री विक्रम वर्मा, श्री कैलाश सारंग, श्री मेघराज जैन सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
अजय वर्मा

Friday 18 July 2014

स्वस्थ जीवन शैली: कला और विज्ञान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी दिनांक 19-20 जुलाई, 2014 (शनिवार-रविवार)

आधुनिक सभ्यता ने भौतिक धरातल पर विचार और आचरण का जो ताना-बाना बुना है, जिसमें नैसर्गिता का लोप होता दिखाई पड़ता है। मानव निर्मित यह स्थिति क्रमिक रूप से मानव को प्राकृतिक विचारधारा और प्राकृतिक जीवन शैली से दूर ले जा रही है। प्रदूषित पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन, मानव की सोच, रहन-सहन, खान-पान आदि में आये परिवर्तनों के कारण मानव सामाजिक दुष्प्रभावों के साथ-साथ कई मनोदैहिक विकारों से त्रस्त हो रहा है।
मानव के स्वस्थ एवं सुखी जीवन के लिए मानव और प्रकृति के मध्य सह-अस्तित्व का जो संबंध है, उसे जानने तथा तद् अनुसार विवेकपूर्ण जीवनशैली विकसित करने की आवश्यकता पर प्रबुद्ध चिंतक, दक्ष चिकित्सक बल दे रहे हैं। इस आवश्यकता को अनुभव करते हुए, आरोगय भारती एवं मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिष् (मेपकास्ट) द्वारा “स्वस्थ जीवन शैली: कला और विज्ञान“ विषय पर दिनांक 19-20 जुलाई, 2014 (शनिवार-रविवार) को राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया है। यह संगोष्ठी मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् (मेपकास्ट) स्थित सभागृह में 19 जुलाई को प्रातः 10 बजे उद्घाटन सत्र के साथ प्रारंभ होगी।
स्वस्थ रहने के लिए हर आयु वर्ग के अलग-अलग मानदंड होते हैं। गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक स्वस्थ रहने के लिए होने वाले प्रयोग एवं उनसे संबंधित शोध पत्र इस दौरान प्रस्तुत किये जायेंगे। इस संगोष्ठी में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त गुजरात आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय जामनगर, भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान जयपुर एवं स्वामी विवेकानंद योग अनुसंसाधन संस्थान बेंगलूरु के वैज्ञानिकोें द्वारा शोधपत्रों का वाचन किया जायेगा। इसके अलावा स्वास्थ्य के क्षेत्र में अद्भत प्रयोग करने वाले व्यक्तियों के अनुभव कथन भी शामिल होंगे।
डाॅ. अशोक वार्ष्णेय , आ.भा. संगठन मंत्री, आरोग्य भारती

Thursday 17 July 2014

भोपाल को दुनिया का सबसे सुन्दर शहर बनायेंगे

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि भोपाल को दुनिया का सबसे सुन्दर शहर बनाया जायेगा। भोपाल में लाईट मेट्रो ट्रेन शुरू की जायेगी। मुख्यमंत्री श्री चौहान आज यहाँ करीब 29 करोड़ 47 लाख रूपये की लागत से बनने वाले केबल स्टे ब्रिज के शिलान्यास समारोह को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में गृह मंत्री श्री बाबूलाल गौर, महिला-बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री श्री कैलाश जोशी उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि नगर निगम को विकास कार्यों के लिये मुख्यमंत्री अधोसंरचना योजना में 120 करोड़ रूपये उपलब्ध करवाये गये हैं। भोपाल में राजधानी होने के गौरव को बढ़ाने वाले विकास कार्य किये गये हैं। भोपाल में सुनियोजित विकास हुआ है। यातायात की दिक्कतों को दूर किया गया है। भोपाल के विकास के लिये राज्य सरकार हरसंभव मदद करेगी। इस केबल स्टे ब्रिज के बनने से भोपाल की गौरव बड़ी झील की सुन्दरता और बढ़ेगी।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि आज मध्यप्रदेश विकास के हर मापदण्ड पर आगे बढ़ रहा है। विकास दर और कृषि विकास में मध्यप्रदेश देश में अग्रणी है। प्रति व्यक्ति आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विकास का लाभ हर गरीब तक पहुँचाया गया है क्योंकि हम मानते हैं कि संसाधनों पर सबका हक है। ऐसी आवास नीति बनाई जा रही है जिसमें सबके लिये आवास की व्यवस्था हो। उन्होंने अपील की कि हर बच्चे को स्कूल भेजें और शिक्षित मध्यप्रदेश बनाने में हर नागरिक सहयोग करे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि भोपाल नगर निगम बेहतर काम कर रही है। नगर निगम को राज्य शासन का पूरा सहयोग मिलेगा। ग्रामीण विकास मंत्री एवं जिले के प्रभारी श्री गोपाल भार्गव ने कहा कि मध्यप्रदेश शहरी और ग्रामीण विकास दोनों क्षेत्रों में अग्रणी है। इस केबल ब्रिज के बनने से यातायात सुगम होगा।
महापौर श्रीमती कृष्णा गौर ने स्वागत भाषण में कहा कि कमला पार्क से रेत घाट तक बनने वाला यह केबल स्टे ब्रिज शहर के लिये एक बड़ी सौगात है। प्रदेश का पहला 6 लेन फ्लाय ओवर हबीबगंज में बन रहा है। विधायकगण सर्वश्री आरिफ अकील, सुरेन्द्र नाथ सिंह, विश्वास सारंग, रामेश्वर शर्मा और विष्णु खत्री, नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष श्री मोहम्मद सगीर, महापौर परिषद के सदस्य, पार्षद और प्रशासनिक अधिकारी इस मौके पर उपस्थित थे। अंत में आभार प्रदर्शन नगर निगम अध्यक्ष श्री कैलाश मिश्रा ने किया।
केबल स्टे ब्रिज
भोपाल शहर में कमला पार्क से रेत घाट तक केबल स्टे ब्रिज का निर्माण कार्य जेएनएनयूआरएम में 29.47 करोड़ रुपये लागत से करवाया जायेगा। ब्रिज 300 मीटर लम्बाई में एवं 17 मीटर चौड़ाई में बनाया जायेगा। अत्याधुनिक तकनीक से बनाये जाने वाला यह स्टील केबल स्टे ब्रिज पुराने और नये भोपाल शहर के बीच सेतु का काम करेगा।               एस.जे.

Tuesday 15 July 2014

धुएं में फिक्र

कभी बचपन में हम बच्चों को दुबले-पतले, खांस-खांस कर बीड़ी फूंकते हुए बुजुर्गो के मुंह से बीड़ी खींच कर और फिर उन्हें यह कह कर चिढ़ाते हुए खूब मजा आता था कि ‘बीडी पीकर ज्ञान घटे, खांसत-खांसत जी थके, खून सूखा अंदर का, मुंह देखो बन्दर का’ । हमारी इन हरकतों से नाराज होकर जब कोई बुजुर्ग हमारे पीछे अपनी बीड़ी के लिए हांफ-हांफ कर दौड़ लगा बैठते तो हम एक ही सांस में दूर तक भाग खड़े होते। तब हताश होकर वे बेचारे थोड़ी दूर भागने के बाद ही थक हारकर वहीं बैठ बंडल से दूसरी बीड़ी जलाकर धुंआ उगलने बैठ जाते। यह देख हम चोरी-छिपे दबे पांव आकर उनके पीछे चुपचाप इस ताक में बैठ जाते कि कब हमें फिर से यह खेल खेलने का मौका मिले। इस दौरान जब कभी उनकी नजर हम पर पड़ती तो वे डांटने डपटने के बजाय मुस्कराते हुए उल्टी-सीधी बीड़ी मुंह में फंसा कर कभी नाक से तो कभी मुंह से हवा में धुंए की विभिन्न कलाकृतियाँ उकेरने लगते तो हम मंत्रमुग्ध होकर यह खेल देखते दंग रह जाते। तब उनका यह करतब हमारे लिए किसी जादूगर के जादू से कम न था।

बचपन के दिन बीते और बड़े हुए। समझ में आया कि बचपन में हम तो मासूम थे ही, लेकिन बीड़ी का धुंआ उड़ाने वाले हमारे बड़े बुजुर्ग भी कम मासूम न थे, जो खांसते-खांसते बेदम होकर भी हमें धुंए की जादूगरी दिखाना कभी न भूले, पर कभी यह न जान सके कि यह धुंआ सबके लिए कितना घातक है। आज भी गांव से लेकर शहर तक जब किसी को बेफ्रिक होकर धुंआ उड़ाते, मुंह में गुटखा ठूसें देखती हूँ तो यही लगता कि हम पहले से भी ज्यादा मासूम हो चुके हैं, जो लाख चेतावनी और जागरूकता के बावजूद भी तम्बाकू को गले लगाकर खुश हुए जा रहे हैं।
           हाल ही में तम्बाकू से बचने के तमाम उपदेशों के प्रचार के साथ विश्व तम्बाकू निषेध दिवस गुजर गया। माना जाता है कि धूम्रपान सर्वप्रथम अमेरिका में 'रेड इंडियंस' ने शुरू किया। सन् 1600 के प्रारम्भ में यह यूरोप के देशों में फैला।   मौजूदा समय में विश्व जनसंख्या का एक बड़ा भाग धूम्रपान  के रूप में तम्बाकू का उपयोग करता है, बहुत सारे लोग इसे चबाते हैं।  जबकि  लगभग सभी वैज्ञानिक शोध तम्बाकू के नतीजों में तम्बाकू के सेवन को हानिकारक बताया गया है। निकोटीन सिगरेट में प्रयोग होने वाली तम्बाकू का एक व्यापक उत्तेेजना पैदा करने वाला घातक होता है। यह अधिक विषैला होता है और शरीर पर कई तरह के घातक असर डालता है।  धूम्रपान से बढ़ा हुआ रक्त हृदय रोग की संभावनाओं को बढ़ा देता है। गर्भवती महिलाओं में निकोटिन से भ्रूण की वृद्धि कम होती है। निकोटीन के अलावा तम्बाकू के धुंए में कार्बनमोनोआॅक्साइड बहुचक्रीय ऐरोमेटिक हाइड्रोकार्बन एवं टार पाये जाते हैं।  यह टार कैंसर पैदा करने में किस तरह की भूमिका निभाता है, यह अब छिपा नहीं है। यह ध्यान रखना चाहिए कि  फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित पंचानबे फीसद मरीज धूम्रपान या तम्बाकू चबाने के कारण इस स्थिति में पहुंचते हैं। इसके अलावा, भारत में सबसे ज्यादा टीबी या तपेदिक के रोगी मिलते हैं, जिसकी एक सबसे बड़ी वजह धूम्रपान ही है। साथ ही, खांसी या  ब्रोंकाइटिस,  हृदय संवहनी रोग, फेफड़ों की बीमारी का नतीजा यह होता है की इससे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है।
दरअसल, तम्बाकू सेवन रोगों को खुला निमंत्रण तो देता ही है, साथ ही यह धूम्रपान न करने वालों को चिड़चिड़ा बनाता है। बल्कि सच कहा जाय तो धूम्रपान न करने वाले इसकी आदत रखने वालों से परेशान ही रहते हैं, भले ही वे सार्थक विरोध नहीं जता पाएं।

विजयराघवगढ़ में अंत्योदय मेला

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कटनी जिले के विजयराघवगढ़ में अंत्योदय मेला को संबोधित किया।

अच्छी वर्षा के लिए भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने उज्जैन में सपरिवार भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना कर प्रदेश में अच्छी वर्षा की प्रार्थना की।

Saturday 12 July 2014

प्रजातंत्र की गरिमा कायम रखी है श्री शिवराज ने

प्रजातंत्र में लोकप्रियता की कसौटी का मापदण्ड क्या? इसका सबसे सरल और सीधा जवाब है जनता की स्वीकार्यता और चुनाव में जीत। श्री शिवराजसिंह चौहान की इससे बड़ी जन स्वीकार्यता क्या होगी कि प्रदेश के युवा उन्हें अपने मामा, महिलायें अपने भाई और प्रदेशवासी अपना सबसे प्रिय हितैषी मानते हैं। ऐसा कोई एक-दो दिन में नहीं हुआ। श्री शिवराज ने मन वचन और आचरण से अपने आप को ऐसा ढ़ाला है कि पूरा प्रदेश उनका अपना हो गया। और जहाँ तक चुनाव में जीत का सवाल है वे लगातार इस कसौटी में खरे उतरे हैं।

मध्यप्रदेश के जैत गाँव के किसान परिवार में 5 मार्च 1959 को जन्मे श्री शिवराजसिंह चौहान बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी हैं। नेतृत्व क्षमता उनमें बचपन से है। छोटी कक्षा में मानीटर बनने से लेकर मॉडल हायर सेकेण्ड्री स्कूल के छात्र संघ अध्यक्ष तक उन्होंने छात्र जीवन में नेतृत्व का पाठ सीखा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विभिन्न पदों में रहे। भारतीय जनता पाटी के युवा मोर्चा के अनेक पदों से लेकर अध्यक्ष तक का पदभार उन्होंने संभाला। वे भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। वे सन् 1990 में पहली बार बुदनी विधानसभा क्षेत्र में विधायक का चुनाव जीते। उनकी नेतृत्व क्षमता, मिलनसारिता, सरल व्यक्तित्व और सर्वसुलभता का परिणाम था कि वे पाँच बार चुनाव में विजयी होकर विदिशा-रायसेन लोकसभा क्षेत्र से संसद सदस्य रहे। नेतृत्व क्षमता को ही पहचान कर भारतीय जनता पार्टी ने शिवराजसिंह चौहान में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की योग्यता देखी। शिवराजसिंह चौहान 29 नवम्बर 2005 को पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री बनाये जाने के निर्णय में वे एक सफलतम व्यक्ति साबित हुए।

वर्ष 2008 में प्रदेश विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री रहते हुए चौहान ने नेतृत्व में लड़ा गया। इसमें भारतीय जनता पार्टी ने पुन: ऐतिहासिक जीत दर्ज की। परिणामस्वरूप श्री चौहान ने 12 दिसम्बर 2008 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की दोबारा शपथ ली। इस विजय ने साबित कर दिया कि शिवराजसिंह चौहान सही अर्थों में जननेता हैं। उन पर आम जन का अटूट विश्वास है। शिवराज ने भी इस विश्वास को कभी खंडित नहीं होने दिया। उन्होंने प्रदेश में प्राय: सभी वर्गों की पंचायतें बुलाकर उनके हित में व्यवहारिक निर्णय लिये।

उन्होंने मध्यप्रदेश को बीमारू के कलंक से उबार कर देश का सबसे तेजी से विकसित होता राज्य बनाया। उनके कार्यकाल में मध्यप्रदेश की विकास दर लगातार डबल डिजिट में चल रही है। कृषि विकास दर 19 प्रतिशत से अधिक होने का चमत्कार मध्यप्रदेश में श्री चौहान के नेतृत्व में देखा है। प्रदेश में 24 घंटे बिजली और क्षिप्रा का नर्मदा से मिलन भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। सिंचाई, सड़कें, उद्योग आदि हर क्षेत्र में मध्यप्रदेश के बढ़ते कदम देश के लिये उदाहरण बन गये। श्री शिवराज का संकल्प है कि मध्यप्रदेश को देश का ही नहीं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाना है। जनता भी उनके साथ है तभी पिछले विधानसभा निर्वाचन में श्री चौहान के जादुई नेतृत्व में उन्हे 165 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला। उन्होंने 14 दिसम्बर 2013 को जम्बूरी मैदान में आयोजित ऐतिहासिक समारोह में तीसरी बार लगातार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली।

आकर्षण है श्री शिवराज में। वे प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो बिल्कुल सरल, सहज, मिलनसार हैं। उनमें पद का घमंड किसी ने कभी ने देखा होगा। हर कोई उनसे मिल लेता है। बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि वे खुद ही जाकर हर किसी से मिल लेते हैं। इसमें सबसे बड़ी बात यह की वे पंक्ति में खड़े सबसे आखिरी व्यक्ति तक पहुँचने की कोशिश ही नहीं करते स-प्रयास उनके समीप होते हैं। लगता है हर किसी की पीड़ा उनकी अपनी है। इस पीड़ा को हर लेना चाहते हैं वे।

कठिन परिश्रम में उनका कोई सानी नहीं है। आश्चर्य होता है देखकर कि वे प्रतिदिन 18 घंटे से अधिक लगातार कार्य करते हैं। उनके द्वारा किया गया जनदर्शन, वनवासी सम्मान यात्रा और अभी हाल में हुये विधानसभा चुनावों से पहले उनकी जन आशीर्वाद यात्रा सुबह से लेकर अक्सर दूसरा दिन लग जाने तक लगातार चलीं। वे कभी थकते नहीं दिखे। विभागों की समीक्षा का दौर और प्रशासनिक कार्य भी वे ऐसे ही लगातार करते हैं। उन्होंने एक आम कार्यकर्ता से लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनने का सफल इसी परिश्रम से तय किया है। वे सतत अध्ययनशील हैं। सामान्यत: किसी भी विषय पर वे बिना अध्ययन के नहीं बोलते। जब भी बोलते हैं पूरे अधिकार के साथ विषय पारंगत होकर। सबने सुना है धर्मों और दर्शन के विविध आयामों पर उन्हें बोलते हुए। गीता के श्लोक उन्हें कंठस्थ हैं। सामयिक विषयों पर लगातार तथ्य परक बात करते हैं। उनके मुख से कबीर और संत रविदास, महात्मा ज्योतिबा फुले की वाणी झरने के शुद्ध जल की तरह प्रवाहित होते देखी है। प्रकाश पर्व पर गुरू ग्रंथ साहब, पर्यूषण पर्व के क्षमापर्व के अवसर पर जैन धर्म का उल्लेख, इस्लाम और ईसाई धर्मों के त्यौहारों पर शिवराज का धार्मिक संवाद सुन बहुतों को अवाक होते देखा है। अपने शासकीय निवास पर इन सब धर्मों को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाने वाले देश के पहले मुख्यमंत्री हैं।

श्री चौहान ने अपने जीवन में पं. दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन को अपनाया है। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जितनी भी योजनाएँ बनाईं सभी में पं. दीनदयाल उपाध्याय की प्रेरणा दिखायी देती है। वे दीन को भगवान मानकर उनकी सेवा का संकल्प लिये कार्य करते हैं। पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति और समाज के सबसे कमजोर वर्ग का सबसे पहले कल्याण उनका लक्ष्य होता है।

दृढ़-इच्छाशक्ति के साथ संकल्पबद्ध होकर कार्य करना उनकी विशेषता है। इसी विशेषता से उन्होंने मध्यप्रदेश में बेटी को बोझ से वरदान बना दिया। आज मध्यप्रदेश में बेटियाँ अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। शिवराज का '' बेटी बचाओ अभियान'' प्रदेश में जन आंदोलन का रूप ले चुका है। बेटियों की घटती संख्या राष्ट्रीय चिंता का विषय है। मध्यप्रदेश में उनके द्वारा प्रारंभ अभियान से वे देश में बेटी बचाओ आंदोलन के प्रणेता बन गये हैं।
श्री शिवराज अपने सरल स्वभाव और साफगोई से सबको अपना बना लेते हैं। राजनीति में उनकी सौजन्यता से विरोधी भी कायल हो जाते हैं। राजनीति उनके लिये सेवा का माध्यम है। उन्होंने अपने पुरूषार्थ, कर्मठता और सहजता से राजनीति को नयी शैली दी है। प्रजातंत्र की गरिमा ऐसे ही नेतृत्व से कायम है।
        श्री गौतम  http://mpinfo.org से साभार 

हिन्द-रक्षक पुण्योदय प्रकल्प कार्यक्रम


मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज इंदौर के बास्केटबाल काम्पलेक्स में पूर्व शिक्षा मंत्री स्व. श्री लक्ष्मण सिंह गौड़ की स्मृति में हिन्द-रक्षक के पुण्योदय प्रकल्प कार्यक्रम को संबोधित किया तथा स्कूली बच्चों को कॉपियों का वितरण किया।  
प्रस्तुत है विडिओ रिकॉर्डिंग  
















Friday 11 July 2014

पचमढ़ी

जब सूरज की प्रचण्ड गर्मी से हवा गर्म होने लगी, तो वह आग में घी का काम कर लू का रूप धारण कर बहने लगी। सूरज के प्रचण्ड रूप को देखकर पशु पक्षी ही नहीं, वातावरण भी सांय-सांय कर अपनी व्याकुलता व्यक्त करनी लगी तो प्रसाद जी की पंक्तियां याद आयी- "किरण नहीं, ये पावक के कण, जगती-तल पर गिरते हैं।" लू की सन्नाटा मारती हुई झपटों से तन-मन आकुल-व्याकुल हुआ तो मन पहाड़ों की ओर भागने लगा। सौभाग्यवश पिछले सप्ताह आॅफिस की ओर से पचमढ़ी की वादियों में 3 दिवसीय कार्यालय प्रबन्धन प्रशिक्षण का सुअवसर मिला तो तपती गर्मी से झुलसाये तन-मन में पचमढ़ी हिल स्टेशन घूमने की तीव्र उत्कण्ठा जाग उठी।
गर्मी के प्रकोप से बचने के लिए सुबह 19 सहकर्मियों के साथ हम बड़े उत्साह और उमंग के साथ बस द्वारा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी पर स्थित सुन्दर पठारों से घिरे ‘सतपुड़ा की रानी‘ पचमढ़ी के लिए रवाना हुए।  भोपाल से पचमढ़ी लगभग 200 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। लगभग 4 घंटे तपते-उबलते जैसे ही हमारी बस पिपरिया से सर्पाकार पहाड़ी घाटी की ओर बढ़ी तो गर्मी के स्थान पर ठंडी हवा के झौंकों ने आकर हमारा स्वागत किया तो मन मयूर नाच उठा और आंखे चारों ओर फैली शस्य-श्यामला और हरे-भरे साल-सागौन, देवदार, नीलगिरि, गुलमोहर और अन्य छोटे-बड़े दुर्लभ किस्म के पेड़-पौधों की मनमोहक दृश्यावली में डूबने-उतरने लगा। चारों ओर  फैली घनेरी झाड़ियों, लताओं, ऊँचे-ऊँचे पेड़-पौधों के रूप  में प्रकृति ने अपने विविध रूप से  "मांसल सी आज हुई थी, हिमवती प्रकृति पाषाणी" (प्रसाद जी) बनकर मन मोह लिया।
पचमढ़ी पहुंचने पर उसकी खूबसूरती और शांति में डूबकर श्रांत-क्लांत मन ताजा हो उठा। पचमढ़ी में ठहरने के लिए टूरिस्ट बंगले, हाॅलीडे होम्स और काॅटेज के साथ ही सस्ते रेस्ट हाउस भी उपलब्ध हैं लेकिन हम सभी सहकर्मियों के लिए आॅफिस की ओर से पंचायत गेस्ट हाउस में खाने-ठहरने की उचित व्यवस्था की गई थी। शाम को सभी पैदल-पैदल पचमढ़ी बाजार की सैर को निकल पड़े। यहाँ के सुव्यवस्थित और पाॅलीथीन मुक्त बाजार देखना शहरवासी के लिए सबक है।  हमारे प्रशिक्षण का समय सुबह 9 बजे से 3 बजे निश्चित था इसलिए उसके मुताबिक ही सबने आपस में मिल बैठ आसपास के दर्शनीय स्थलों जैसे- पांडव गुफा, धूपगढ़, बी फाॅल, अप्सरा फाॅल, रजत प्रपात, जटाशंकर, हांडी खोह, राजेन्द्र गिरि आदि खंगालने का प्रोग्राम बनाया।
 गर्मियों में शरीर को ऊर्जावान व स्वस्थ बनाये रखने के लिए सुबह-सवेरे ताजी हवा में घूम-फिर कर थोड़ा बहुत योग, व्यायाम कर लेना लाभप्रद माना गया है और अगर घूमने-फिरने की जगह कोई हिल स्टेशन हो तो फिर समझो कारूं का खजाना हाथ आ गया। यह बात ध्यान में रखते हुए मैं सुबह 5 बजे पैदल-पैदल सघन वृक्षों से आच्छादित वन गलियारों और घाटियों की मनमोहक दृश्यावली में गोते लगाने निकल पडी। यहाँ मुझे एक ओर सैनिकों का अभ्यास तो दूसरी ओर हरियाली से घिरा राजभवन और कलेक्टर का बंगला देखना बड़ा सुहावना लगा। कभी गर्मियों में एक माह के लिए पूरा मंत्रिमंडल का कुनबा और उच्च शासकीय अधिकारी इसी आरोग्य धाम में आकर सरकार चलाये करते थे। नगरों की बढ़ती पर्यावरण प्रदूषण समस्या से दूर यहाँ शुद्ध हवा के साथ शांत वायुमण्डल पाकर मन तरोताजगी से भर उठा। 
पहले दिन के प्रशिक्षण से छूटते ही लगभग 3 बजे जिप्सी लेकर वी फाॅल और धूपगढ़ के आलौकिक सौन्दर्य देखने निकल पड़े। घने वृक्षों के बीच निकली सड़क के चारों ओर फैली हरियाली, पक्षियों का कलरव, वन्य जन्तुओं की क्रीड़ा देख अभी मन अतृप्त था कि पहाड़ों से फूटते स्वच्छ निर्मल जल स्रोत ने बरबस ही ध्यान आकर्षित किया तो मुंह से भारतेन्दु जी के पंक्ति फूट पड़ी- "नव उज्ज्वल जलधार, हार हीरक-सी सोहती।" ऊँचाई से गिरते बी फाॅल की ठण्डी-ठण्डी फुहारों ने पल भर में शहर की उबासी भरी तपन को निकाल बाहर कर ताजगी भर दी। ताजगी का अहसास लिए हम सूरज ढ़लने से पहले हम सूर्यास्त की सुन्दरता का अद्भुत नजारा देखने धूपगढ़  पहुंचे। यहाँ सतपुड़ा की ऊँची चोटी से एकाग्रचित होकर छोटी-छोटी पहाडि़यों से दूर होते सूरज को बादलों की ओट में छिपते देखना खूबसूरत और यादगार नजारा बन पड़ा। 
दूसरे दिन सुबह हमें पहले योग सिखलाया गया और फिर हमारे घूमने के प्रोग्राम केअनुरूप जल्दी प्रशिक्षण दिया गया। जैसे ही प्रशिक्षण समाप्त हुआ जल्दी से खा-पीकर सभी गुप्त महादेव, बड़ा महादेव, हांडी खोह, पांडव गुफा की सैर को निकल पड़े। सबसे पहले हम पवित्र गुप्त महादेव की गुफा में उनके दर्शनों के लिए संकरी राह से तिरछे-तिरछे होकर सरकते हुए पहुंचे। उसके बाद बन्दरों, लंगूरों की उछलकूद का देखते-दाखते ऊंची-ऊंची चट्टानों के बीच स्थित एक बड़ी गुफा के अंदर बड़े महादेव के दर्शन के लिए आगे बढ़े जहाँ गुफा के अंदर लगातार टपकते पानी को देख शंकर की जटाओं से निकली गंगा के उद्गम का अहसास होता रहा।
शिवदर्शन के बाद हांडीखोह पहुंचते ही यहां बनी रेलिंग प्लेटफार्म से एक ओर घाटी के विहंगम दृश्य देखने को मिला तो दूसरी ओर घने जंगलों से ढकी खाई के इर्द-गिर्द कलकल बहते झरनों की आवाज कानों में मधुर रस घोलने लगी। यहां हमारे सामने एक ओर ऊंचे-ऊंचे पेड़-पौधों से घिरी पहाडि़यों का रोमांच था तो दूसरी ओर हांडीखोह की 300 फीट गहरी खाई का भयानक स्वरूप, जो सुरसा की तरह मुंह फाड़कर निगलने को आतुर नजर आ रही थी।  
यहाँ से आगे बढ़ते हुए हम पचमढ़ी नाम दिलाने वाले पांडव गुफा देखने निकले। यहां पांच गुफानुमा कुटियों को करीब से देखकर सुखद आश्चर्य हुआ। मान्यता है कि कभी वनवास के दौरान लम्बी-चैड़ी कद काठी के महाबलशाली पांडव विशेषकर हजारों हाथियों के बल से अधिक बलशाली लम्बे-चौड़े भीम इनमें कैसे रहे होंगे! गुफाओं के बारे में सोचते-विचारते जैसे ही नीचे तलहटी स्थित खूबसूरत उद्यान पर नजर अटकी तो मोबाइल कैमरे से एक के बाद कई तस्वीर कैद कर डाली। इस पर भी जब मन नहीं भरा तो उद्यान की सैर करते हुए उसकी उपयोगिता और नैसर्गिक सौंदर्य संसार में खो गई। पेड़-पौधे जब पुष्पों-फलों से लदे होते हैं तो अपनी सुगंध से वातावरण को सुगंधित कर पर्यावरण को मोहित करते हैं। मादक महकती बासंती बयार में, मोहक रस पगे फूलों के पराग में, हरे-भरे पौधों की उड़ती बहार में पर्यावरण के दोषों को दूर करने की अद्भुत शक्ति है। इसीलिए वैदिक ऋषि ने इसे महाकाव्य की संज्ञा दी- 'पश्य देवस्य काव्यं न भमार न जीर्यति।' अर्थात् यह ईश्वर का एक महाकाव्य है, जो अमर है, अजर है।  
अंतिम तीसरे दिन प्रशिक्षण समाप्ति के बाद हमने शेष दर्शनीय स्थलों की अधूरी सैर को अगली बार के लिए छोड़ सतपुड़ा की रानी से विदा लेते हुए घर की राह पकड़ी। रास्ते भर प्राकृतिक दृश्यों के अनन्त, असीम सौन्दर्य में मन डूबता-उतरता रहा।  
    कवित रावत के ब्लॉग से साभार